Monday, 14 December 2015

The five orange pips (part-2)

“मेरा नाम जॉन ओपेन शॉ है, मगर मेरे केस का जैसा में जानता हूँ इन विचित्र बातों से थोडा ही सरोकार है| यह एक आनुवंशिक मामला है, इसलिए इसकी झलक देने के लिए में शुरू करता हूँ|"
"मेरे दादा के दो बेटे थे-एक मेरे चाचा एलियस और दूसरे, मेरे पिता जोसेफ| मेरे पिता का कावेंट्री में छोटा-सा कारखाना था| जिसे उन्होंने साईकिल के आविष्कार के समय बढ़ा लिया था| वह ओपेन शॉ के न टूटने वाले टायरों के मालिक थे| उनका कारोबार इतना कामयाब रहा कि इसे बेचकर इससे मिलने वाली धनराशी में आराम से अपना जीवन बिताने लगे|"
"मेरे चाचा जब जवान थे, तो अमेरिका जाकर रहने लगे थे और फ्लोरिडा में पौधों का कार्य करते थे| उनका कारोबार बढ़िया चल रहा था| युद्ध के समय वह जैक्सन सेना में थे और बाद में हुड में, जहाँ वह कर्नल हो चुके थे| जिस समय ली ने समर्पण किया, मेरे चाचा फिर पोधों का कारोबार सँभालने लगे| तीन-चार साल वहीँ रहे| 
सन १८६९ अथवा ७० के आस-पास वे यूरोप वापस लौटे और ससेक्स में हाशमि के निकट एक छोटी भूमि खरीद ली| वह अमेरिका में काफी जायदाद अर्जित कर चुके थे और वहां से लौटने की वजह उनकी काले लोगों के प्रति अरुचि और संघीय नीति के के प्रति नाराज़गी थी| वह एकाकी, सरवने, गुस्से में भद्दी बातें करने लग जाते थे|

वह जितने साल हाशमि में रहे, उन्होंने कभी कस्बे में पांव नहीं रखा| उनके घर के आस-पास एक बगीचा और दो-तीन खेत थे| वहां लोग कसरत करते थे| महीनों वह अपना कमरा नहीं छोड़ते थे| ब्रांडी कुछ ज्यादा ही पीते थे| समाज से भी दूर-दूर रहा करते थे| न उनका कोई दोस्त था, न ही किसी को वे पसंद करते थे, यहां तक कि अपने भाई को भी नहीं|
बस वह मुझे ही पसंद करते थे| तब से उन्होंने मुझे देखा बहुत प्यार करने लगे थे| उस समय मैं बारह साल का था| यह १८७८ की बात है| इसके बाद वह आठ-नौ साल इंग्लैण्ड में रहे| मेरे पिता से कहने के बाद उन्होंने मुझे अपने साथ ही रख लिया था|

वह मुझसे बहुत अच्छा व्यवहार करते थे| कभी-कभी खुश होकर मेरे साथ खेलते भी थे| अपने नौकरों और कारोबारी लोगों के सामने वह मुझे अपने प्रतिनिधि के रूप में पेश करते थे| सोलह साल की उम्र में मैं घर का पूरा मालिक बन चूका था|

घर की सारी चाबियां मेरे पास ही होती थी| मुझे हर जगह जाने, कुछ भी करने का पूरा अधिकार था| उनके अधिकार में सिर्फ अटारी वाला कमरा ही रहता था| उस कमरे में हमेशा ताला लगा रहता था| इसके अन्दर जाने की किसी को इजाजत नहीं थी| मुझे भी नहीं| एक दिन चाबी के छेद से मैंने उसके अन्दर झांका तो उसमें पुराने बक्से और गठरियां ही थी|
यह सन १८८३ की बात है| मेज़ पर एक लिफाफा रखा था, जिस पर विदेशी मुहर लगी थी| ख़त प्राप्त करना उनके लिए सरल कार्य नहीं था, क्योंकि उनके सारे बिल नकद अदा हते थे| उनका कोई दोस्त भी नहीं था|

भारत से| वह उस लिफाफे को उठाकर बोले-पांडिचेरी का डाक टिकट लगा है| यह क्या हो सकता है?

उन्होंने उस लिफ़ाफ़े को जल्दी से खोला, तो पांच बीज निकलकर उनकी तस्तरी में गिर गए| यह देखते ही मुझे हंसी आ गई| लेकिन उनका चेहरा देखते ही मेरी हंसी गायब हो गई| उनकी आँखें बहार को आ गई थी और होंठ लटका हुआ था| चेहरा पीला पड़ चुका था| वह अपने कांपते हाथों से लिफ़ाफ़े को देख रहे थे| 'के...के...के' वह चिल्लाए और फिर देखते ही देखते उनके हाथ पैर ठन्डे होने लगे थे| 
"क्या बात है चाचा-!" मैं भयभीत स्वर में चिल्लाया-"मुझे बताओ तुम्हे क्या हुआ है?"

"मृत्यु-|" उन्होंने कहा और मुझे डर से काँपता हुआ देखकर वह उठे और अपने कमरे की और चल दिए|

उनके जाने के बाद मैंने लिफाफा उठाया, और अन्दर की तरफ गोंद के ठीक ऊपर लाल प्रतीक देखा| उसके ऊपर तीन बार 'के' लिखा हुआ था| उसमे पांच सूखे बीजों के अलावा कुछ नहीं था|
इस डर की क्या वजह हो सकती थी, मैं डर के मरे नाश्ता छोड़कर उठ गया और जैसे ही सीढ़ियों पर चढ़ा, मैंने चाचा को जंग लगी चाबी लेकर नीचे आते हुए देखा| वो चाबी शायद अटारी की थी| उनके एक हाथ में चाबी थी, और दुसरे में पीतल का बक्सा| वह बक्सा कुछ इस प्रकार का बना था जैसे पुराने लोग पैसा रखने का बनाते हैं|

"वह जो चाहे कर लें, लेकिन मैं उन्हें सफल नहीं होने दूंगा|" उन्होंने प्रतिज्ञा करते हुए कहा-"मैरी से कहो कि मेरे कमरे में आग जला दे, और हाशमि के वकील फार्देम को बुला लाये|"
जैसा उन्होंने कहा, मैंने वैसा ही किया|

जिस समय वकील पहुंचा, मुझे कमरे में बुलाया गया| आग तेजी से जल रही थी और आगदान में जले कागज जैसी काली, फूली हुई राख का ढेर पड़ा हुआ था| मेरी नज़र जैसे ही उस पीतल के बक्से पर पड़ी, उस पर 'के' लिखा हुआ था| जैसा कि मैंने लिफ़ाफ़े के ऊपर देखा था|  
मेरे चाचा बोले-"मैं चाहता हूँ जॉन कि तुम मेरी वसीयत के साक्षी बनो, मैं अपनी सारी जायदाद तुम्हारे पिता के नाम छोड़ता हूँ, जो बाद में तुम्हे मिलेगी| अगर तुम इसका अच्छा इस्तेमाल करो तो| बहुत अच्छी बात होगी| अगर तुम्हे लगे कि तुम इसका लाभ नहीं उठा सकते तो तुम इसे अपने घोर शत्रु के लिए छोड़ देना| मैं शर्मिंदा हूँ कि मैं तुम्हें ऐसी दोधारी वास्तु दे रहा हूँ, लेकिन मैं तुम्हें नहीं बता सकता कि अगला मोड़ कौन-सा हो सकता है, इसलिए जहाँ वकील साहब कहते हैं हस्ताक्षर कर दो|"

"मैंने हस्ताक्षर कर दिए, उसके बाद वो कागज वकील अपने साथ ले गया| इस घटना का मुझ पर काफी प्रभाव पड़ा, मैंने काफी सोच-विचार किया, हर तरीके से अपना दिमाग चलाया, लेकिन कोई फायदा नहीं| मेरे दिल में जो डर बैठ गया था वो निकल नहीं पाया|
कुछ सप्ताह बाद मैं थोड़ा संभल गया, और हमारे जीवन में बाधा डालने वाली भी कोई बात नहीं थी, लेकिन मैं अपने चाचा में कुछ परिवर्तन देख रहा था| अब वह काफी शराब पीने लगे थे| समाज से बिलकुल अलग हो चुके थे| उनका ज्यादातर वक्त उनके कमरे में गुजरता|
उनके कमरे का दरवाजा हमेशा अन्दर से बंद रहता था| जब भी वह बहार होते थे तो गुस्से और नशे की हालत में होते थे| उनके हाथ में एक रिवाल्वर होता, जिससे वह हमेशा गोलियां बरसाते थे और चिल्लाते थे कि उन्हें किसी से डर नहीं लगता है| जब उनका यह गुस्सा ख़त्म हो जाता तो वह अपने कमरे में घुस जाते थे और अपने पीछे ताला लगाकर इसे बंद कर लेते| उसी तरह जैसे वह किसी से डरते हों|
उस समय जब मैं उनका चेहरा देखता था तो सर्दियां होने के बावजूद भी उनके चेहरे पर पसीना होता था| 
मिस्टर होम्स! अब मैं केस के आखिर में आते हुए बताता हूँ कि एक रात अचानक उन्हें फिर वही गुस्से और नशे के दौरे पड़े| जिनसे वे कभी वापस नहीं आए| जब हमने उन्हें तलाश किया तो वह तालाब में औंधे मुंह पड़े हुए थे| पानी दो फुट गहरा था| चोट का भी कहीं कोई निशान नहीं था|

सभी लोगों ने उसे आत्महत्या मान लिया| 

To be continued...

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