Monday, 14 December 2015

The five orange pips (part-1)

सितम्बर के महीने का अंत चल रहा था| पूरे दिन काफी तेज़ हवा चलती रही| इसके साथ ही बारिश कि फुहार सी पड़ रही थी| लन्दन के बीचों-बीच बैठे हम लोग रोजाना कि जिंदगी से अलग विचार करने व पहचानने के लिए मजबूर हो गए थे|
मनुष्य कि सभ्यताओं में मोजूद महान तात्विक बल चिंघाड़ रहा था| शाम होते-होते तूफ़ान बढ़ गया| चिमनी से आती हवा किसी बच्चे कि तरह शोर मचा रही थी| होम्स आग के पास बैठा अपने आपराधिक अभिलेखों को सूचीबद्ध कर रहा था, जबकि मैं दूसरे सिरे पर बैठा क्लार्क रसेल कि सामुद्रिक कथाओं में डूबा हुआ था| मेरी पत्नी मायके गई थी| इसलिए मैं कुछ दिनों के लिए बेकार स्ट्रीट के अपने पुराने मकान में आ गया था|
"क्यों-|" अपने दोस्त की तरफ देखकर मैंने पूछा-"घंटी बजी थी न? आज रात के समय कौन आ सकता है? मुझे तो लगता है तुम्हारा कोई दोस्त ही होगा, वरना इतनी रात में-|"
"मेरा तुम्हारे अलावा कोई और दोस्त नहीं है|" उसने जवाब दिया-"मैं मेहमानों को ज्यादा नहीं बुलाता|"
"फिर कोई क्लायंट?"
"यदि ऐसा है तो मामला गंभीर होगा| कोई छोटी बात तो इस समय किसी आदमी को बाहर नहीं ला सकती| लेकिन मुझे लगता है की यह मकान मालकिन ही होगी|"
होम्स का अंदाजा गलत था| गलियारे में किसी के चलने की आवाज़ सुनाई पड़ी, फिर दरवाज़ा खटखटाया गया| उसने अपनी लम्बी बांह फैलाई तथा लैम्प को खुद से परे हटाते हुए एक खाली कुर्सी पर रख दिया, जिस पर आने वाला बैठता| "अन्दर आ जाओ|" उसने कहा|
आने वाला आदमी जवान था, उसकी उम्र बाईस साल की थी| उसने चुस्त वस्त्र पहने हुए थे जो आकर्षक लग रहे थे| उसके हाथ में थमा टपकता छाता और उसकी लम्बी चमकदार बरसाती भयानक मौसम के बारे में बता रहे थे| जिसमे से होकर वह आया था|
उसने लैम्प की रौशनी में चिंतित भाव से चारों तरफ देखा| मैंने ध्यान दिया की उसका चेहरा पीला था, और उसकी आँखें चिंता से बोझिल हो रही थी, वह कुछ भयभीत था| 
"मैं आपसे माफ़ी मांगना चाहता हूँ|" उसने आँखों पर लगा सुनहरी चश्मा ठीक करते हुए बताया-"मेरा यकीन है की मैं हस्तक्षेप नहीं कर रहा| मुझे डर है कि मैं तूफ़ान और बरसात के कुछ चिन्ह आपके कमरे में ले आया हूँ|"
"मुझे बरसाती तथा छाता दो|" होम्स ने कहा-"वह यहाँ हुक पर टंगे रहेंगे और अभी सूख जायेंगे| मेरा अनुमान है की तुम दक्षिण-पश्चिम से यहाँ आये हो|"
"हाँ, हाशमि से|" उसने बताया|
"तुम्हारे जूतों की नोक पर लगा मिटटी तथा खड़िया का बुरादा इस बात का सबूत है|"
"मैं आपसे कुछ मामले में सलाह लेने आया हूँ, उम्मीद है आप मुझे निराश नहीं करेंगे|"
"वो तुम्हे अवश्य मिलेगी|"
"और मदद?"
"यह प्राप्त करना हमेशा आसन नहीं है|" शरलॉक होम्स ने कहा-"मदद भी किसी-किसी को मिलती है|"
"मैंने आपके बारे में सुना था, श्री होम्स! मैंने मेज़र पैंडरगास्ट से सुना था कि कैसे आपने उसे टैंकरविले क्लब काण्ड से बचाया था|"
"हाँ जरूर| उस पर पत्तों की धोखाधड़ी का मिथ्या आरोप था|" वह सोचकर बोला|
"वह कहता था कि आप कुछ भी सुलझा सकते हैं मिस्टर होम्स-|" उस आने वाले व्यक्ति ने कहा|
"उसने कुछ ज्यादा ही कह दिया|"
"आप कभी असफल भी नहीं होते|" वह बोला-"जो काम अपने हाथ में लेते हैं पूरा करते हैं|"
"मैं चार बार नाकामयाब हो चुका हूँ, तीन बार व्यक्तियों द्वारा और एक बार स्त्री द्वारा|"
"लेकिन यह सब आपकी सफलताओं के सामने क्या मायने रखता है!" उस व्यक्ति ने प्रशंसा की|
"यह सच है की साधारणतः मैं कामयाब ही होता हूँ|" मिस्टर होम्स के होठों पर मुस्कराहट थी| 
"फिर तो आप मेरे मामले में भी हो सकते हैं|" उसने कहा-"आप केस हाथ में लेकर देखिये|"
"तुम अपनी कुर्सी आग के पास खींच लो, और विस्तार से अपना मामला समझा दो|"
"मिस्टर होम्स-! यह मामला कोई साधारण मामला नहीं है|" उसके चेहरे पर उलझन के भाव थे|
"मेरे पास केस जब आता है तो तभी आता है जब वह अपने अंत पर पहुँच जाता है|"
"फिर भी मिस्टर होम्स! में आपसे पूछना चाहूंगा कि अपने अनुभव में अभी रहस्यमय और अनसुलझी घटनाओं की ऐसी श्रंखला के विषय में सुना है, जैसी मेरे परिवार में घटित हुई?"
"तुमने मुझे केस के प्रति उत्सुकता जगा दी|" होम्स ने कहा-"मुझे शुरू से पूरी बात बताओ|"

उस आदमी ने अपनी कुर्सी थोडा आगे की और खींची और अपने गीले पैर आग की तरफ बढ़ा दिए|
उसने बताया-“मेरा नाम जॉन ओपेन शॉ है,

To be continued...

3 comments:

  1. bhai thanx yaar for these stories in hindi......

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  2. bhai thanx yaar for these stories in hindi......

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  3. plss bhai aur stories bhi dal do is blig pe.......

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